ये यकीं मानिये कि आप बहुत ही चुनिंदा लोगों में से होंगे अगर आपने अब तक जॉन एलिया का नाम नहीं सुना | जॉन साहब शायद मौजूदा वक्त के ट्रेंडिंग शायरों में सबसे ज्यादा मशहूर हैं | जॉन के शेर तो लाजवाब है ही और साथ में उनका शेर कहने का अंदाज़ भी सबसे हटकर हैं | शायरी से लेकर ज़िंदगी तक में खुद को बर्बाद करने की बात करने वाले जॉन के शेर सीधे दिल में चोट करते हैं | जॉन साहब का एक शेर हैं जोकि मुझे बहुत पसंद हैं -
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं
क्या तक्कलुफ़ करे ये कहने में
जो भी ख़ुश हैं हम उनसे जलते हैं
आज आज मैं इस पोस्ट में जॉन के कुछ नायाब ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ -
"कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे''
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब था
आने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
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- अपने सब यार काम कर रहे हैं -
अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं की नाम कर रहे हैं
तेग़-बाज़ी का शौक अपनी जगह
आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं
हम हैं मशरूफ़-ए-इंतज़ाम मगर
जाने क्या इंतिज़ाम कर रहे हैं
हैं वो बेचारगी का हाल कि हम
हर किसी को सलाम कर रहे हैं
एक कत्तला चाहिए हम को
हम ये एलान-ए-आम कर रहे हैं
उसके होंटो पे रख के होंठ अपने
बात ही हम तमाम कर रहे हैं
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- गाहे गाहे बस अब यही हो क्या -
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या
तुम से मिलकर बहुत ख़ुशी हो क्या
मिल रहीं हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या
बस मुझे यूँही इक ख़्याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या
अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या
क्या कहाँ इश्क़ ज़ावेदनी हैं !
आख़री बार मिल रहीं हो क्या
मेरे सब तंज़ बे-असर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या
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- सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई -
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई
हाँ ठीक हैं मैं आपकी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मेरे मिज़ाज़ में क्यूँ दख़्ल दे कोई
ऐ शख़्स अब तो मुझको सब कुछ क़ुबूल हैं
ये भी क़ुबूल हैं कि तुझे छीन ले कोई
एक शख़्स कर रहा हैं अभी तक वफ़ा का ज़िक्र
क़ाश उस ज़बां-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
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