Wednesday 27 May 2020

Neelesh Mishra (Kavita)


नीलेश मिश्रा एक प्रसिद्ध कहानीकार,गीतकार और पत्रकार हैं | इन्होने बहुत सी कहानियां कई सारे रेडियो चैनल में सुना चुके हैं अब ये यूट्यूब पर भी अपने चैनल पर कहानियां सुनाते हैं | इनकी एक मंडली हैं आज के दौर में ये सबसे फेमस स्टोरीटेलर हैं | इनकी कहानियों के बहुत से लोग प्रसंशक हैं जिनमें से एक बड़ा प्रसंशक मैं भी हूँ |  इन्होने कुछ कवितायें भी लिखी हैं जो की बहुत लोगो तक नहीं पहुंची तो इसीलिए आज इस पोस्ट में मैं इनकी कुछ कविताये पेश कर रहा हुँ -






- किसी ने कर दिया हैं छलनी हैं मुझको -


किसी ने कर दिया हैं छलनी हैं मुझको 
कही पे जा के वो बैठा हुआ हैं 
न रो इतना, के तेरे आंशुओं पे 
मेरा कातिल कही पे हंस रहा है
बचा के रख तू ये तकलीफ़ अपनी 
धधकने दे इसे, शोले खिलेंगे 
बस इतना कह दे जा के रहनुमा से 
बग़ावत होगी एक दिन, तब मिलेंगे 




 - आज मैं उसके मोहल्ले में जा के देख आया -


आज मैं उसके मोहल्ले में जा के देख आया 
वहां वो दिल नशीन जाने कब से रहती नहीं 
वो रहा करती थी बेफिक्र सी शेरों में मेरे 
पर मेरी शायरी भी उसकी बात कहती नहीं 
या वो झूठी थी 
या की लफ्ज़ मेरे झूठे थे 
उसके चट्टान से दिल से 
हज़ार बार गिरे 
मेरे नाज़ुक से लफ्ज़
टुकड़ा टुकड़ा टूटे थे 
कोई तो होगी बात ऐसे मन धधकता हैं 
वरना लावा की नदी इस तरह तो बहती नहीं
 

Sunday 24 May 2020

Gulzar-


गुलज़ार 

इनका पूरा नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा  हैं | ये प्रसिद्ध कवी, लेखक, शायर, गीतकार और निर्देशक हैं | आज के समय में बहुत कम की लोग है जो इन्हें न जानते हो | इनका जन्म 18 अगस्त 1936 को दीना,झेलम,जिला पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था | इन्हे 2004 में भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था और इन्हें 2009 में फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में इनके द्वरा लिखे गीत जय हो को ऑस्कर से सम्मानित किया गया था | इनकी प्रमुख रचनाएँ चौरस रात, एक बून्द चाँद, जानम, रवि पार, खराशें आदि हैं |

Varun Anand (Ghazal)




वरुण आनंद एक युवा शायर हैं |उन्होंने बहुत से मुशायरो में शायरी पढ़ी हैं | ये दिल्ली में हर साल होने वाली कार्यक्रम रेख्ता में भी पढ़ चुके हैं | आज मैं इस पोस्ट में इनकी कुछ गज़ले आपके सामने पेश कर रहा हूँ -


- दुःख समझ आए -  




वो क्या सुखन है, कि जिस्मों का दुःख समझ आये 
कहो कुछ ऐस कि रूहों का दुःख समझ आए 

शदीद धुप में इक रोज़ ख़ुद जलो साहब
 तुम्हें भी सूखते पेड़ों का दुःख समझ आए 

मैं चाहता हूँ कोई तीसरा भी हो हम में 
कि जिसको ठीक से दोनों का दुःख समझ आए 

फिर एक रोज़ हमें क़ैद कर दिया उसने 
 वो इसलिए कि परिंदों का दुःख समझ आए 

वो क्या ख़ुदा जो फ़रिश्तो का दुःख समझता हो 
ख़ुदा वहीं जिसे बंदों का दुःख समझ आए 

पहन के देख किसी रोज़ बाप के जूते 
तो तुझको बाप के पैरों का दुःख समझ आए 

छड़ी ली  हाथ में आँखों पे बाँध ली पट्टी 
मैं चाहता था कि अंधों का दुःख समझ आए  


 

Javed Akhtar (Nazm)

जावेद अख्तर फ़िल्मी दुनिया में बहुत ही जाना-माना  नाम हैं |  जावेद अख्तर कवि, गीतकार और पटकथा लेखक हैं | इन्होंने बहुत सारे गीत, ग़ज़लें और कुछ बेहतरीन नज़्में लिखी हैं | इनमें से कुछ नज़्में मैं आपके सामने इस पोस्ट के जरिये आप तक पंहुचा रहा हूँ -




-दुश्वारी-



मैं भूल जाऊँ तुम्हें 
अब यही मुनासिब है
मगर भूलना भी चाहुँ तो किस तरह भूलुँ 
की तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो 
कोई ख़्वाब नहीं हों
यहाँ तो दिल का आलम हैं क्या कहुँ 
कम्बख़्त !
भुला सका न ये सिलसिला 
जो था ही नहीं 
वो एक ख़्याल 
जो आवाज़ तक गया ही नहीं 
वो एक बात 
जो मैं कह न सका तुमसे 
वो एक रब्त 
जो हममें रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब 
जो कभी हुआ ही नहीं 


-अज़ीब आदमी था वो- 


अज़ीब आदमी था वो 
मोहबतों  का गीत था 
बग़ावतो का राग था 
कभी वो सिर्फ फूल था 
कभी वो सिर्फ आग था 
अजीब आदमी था वो 

वो मुफ़लिसों से कहता था 
कि दिन बदल भी सकते हैं 
वो जाबीरों से कहता था 
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं 
कभी पिघल भी सकते हैं 
वो बंदिशों से कहता था 
मैं तुमको तोड़ सकता हूँ 
सहूलतों से कहता था 
मैं तुमको छोड़ सकता हूँ 
हवाओं से वो कहता था 
मैं तुमको मोड़ सकता हूँ 

वो ख़्वाब से ये कहता था 
कि तुझ को सच करूंगा मैं 
वो आरज़ूओं से कहता था 
मैं तेरा हमसफ़र हूँ  
तेरे साथ ही चलूँगा मैं 
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंज़िले 
कभी नहीं थकूंगा मैं 
वो ज़िंदगी से कहता था 
कि तुझको मैं सजाऊँगा 
तू मुझ से चाँद मांग ले 
मैं चाँद ले के आऊँगा 
वो आदमी से कहता था
कि आदमी से प्यार कर 
उजड़ रही है ये ज़मीं कुछ
 इसका तू सिंघार कर 
अज़ीब आदमी था वो 

वो ज़िंदगी के सारे ग़म 
तमाम दुःख 
हर एक सितम से कहता था 
मैं तुमसे जीत जाऊँगा 
कि तुम को तो मिटा ही देगा 
एक रोज़ आदमी 
भुला ही देगा ये जहाँ 
मेरी अलग हैं दास्ताँ 

वो आँखे जिनमें ख़्वाब हैं 
वो दिल हैं जिनमें आरज़ू 
वो बाज़ू जिनमें है सकत 
वो होंठ जिनमें लफ्ज़ हैं 
रहूँगा उन के दरमियाँ 
कि जब मैं बीत जाऊँगा 

अजीब आदमी था वो





















Saturday 23 May 2020

Gopaldas Neeraj (Kavita)


गोपालदास नीरज एक प्रसिद्ध गीतकार और कवि है| इनके लिखे गाने लोकगीत का दर्जा हासिल कर चुके है | इन्हें  इनके गीतों के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चूका हैं | नीरज जी को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता हैं जिन्होंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया | आज मैं इस पोस्ट में मैं आपके सामने गीतकार नीरज नहीं बल्कि कवि नीरज की कुछ कवितायें पेश करने जा रहा हूँ जो की मुझे बेहद पसंद है -




- आंसू जब सम्मानित होंगे -

 

 आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा 
जहाँ  प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जायेगा 
मानपत्र मैं नहीं लिख सका राजभवन के सम्मानों का 
मैं तो आशिक रहा जनम से सुंदरता के दीवानों का 
लेकिन था मालूम नहीं ये केवल इस गलती के कारण 
सारी उम्र भटकने वाला मुझको ये श्राप दिया जायेगा 
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा 
खिलने को तैयार नहीं थी तुलसी जिनके आँगन में 
मैंने भर भर दिए सितारे उनके मटमैले आँगन में 
पीड़ा के संग रास रचाया आँख भरी तो झूम के गाया 
जैसे मैं जी लिया क्या किसी से इस तरह जिया जायेगा 
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा 
काज़ल और कटाक्षों पर तो रीझ रही थी दुनिया सारी 
मैंने किन्तु बरसने वाली आँखों की आरती उतारी 
रंग उड़ गए सब सतरंगी तार तार हर साँस हो गयी 
फटा हुआ ये कुर्ता अब तो ज्यादा नहीं सिया जायेगा 
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा 
जब भी कोई सपना टुटा मेरी आँख वहां बरसी हैं 
तड़पा हुं मैं जब भी कोई मछली पानी को तरसी हैं 
गीत दर्द का पहला बेटा दुःख है उसका खेल खिलौना 
कविता जब मीरा होंगी जब हँसकर जहर पीया जायेगा  
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा  
जहाँ  प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जायेगा  



 
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जोश से भरी हुयी नीरज जी की एक खूबसूरत और मेरी बहुत ही पसंदीदा  कविता आपके सामने प्रस्तुत हैं -

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- तूफ़ानो में चलने का आदी  हूँ -


मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ 
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो 

हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते 
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह  बढ़ाते 
सच कहता हूँ जब मुश्किल ना होती हैं 
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते 
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे 
तुम पथ के कण कण को तूफ़ान करो 


मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ 
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो 


अंगार अधर पे धार मैं मुस्काया हूँ 
मैं मर्घट से ज़िंदगी बुला के लाया हूँ 
हूँ आँख -मिचौनी खेल चला किस्मत से 
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ 
तुम मत मुझ पर कोई अहसान करो 

मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ 
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो 


शर्म के जल से राह सदा सींचती हैं 
गति की मशाल आंधी मैं ही हंसती हैं 
शोलो से ही श्रृंगार पथिक का होता हैं 
मंज़िल की मांग लहुं से ही सजती हैं 
पग में गति आती हैं, छाले छिलने से 
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो 


मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ 
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो 


मैं पंथी तूफ़ानो में रह बनाता 
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता 
वेह मुझे रोकती हैं अवरोध बिछाकर 
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता 
मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हंसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो  


मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ 
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो 














Bashir Badr (Shayri)





उर्दू शायरी और हिंदी कविता सुनने व समझने वाला ऐसा कौन सा शख्स है जिसने डॉ बशीर बद्र का नाम उनके शेर नहीं सुने | बशीर बद्र शायरी की एक भरी-पूरी कायनात के मालिक है | बशीर बद्र साहब की आपने बहुत सी शेर-ओ-शायरी सुनी होगी जो आपने सुना है, वो खूबसूरत है और जो आपने नहीं सुना वो और भी खूबसूरत हैं | इसीलिए मैं आज इस पोस्ट में बशीर बद्र साहब की कुछ चुंनिंदा शायरी (शेर) आपके सामने पेश कर रहा हुँ, मुलाहिज़ा फरमाइए -







अंधेरे रास्तों पर यूँ तेरी आंखे चमकती हैं 
खुदा की बरकते जैसे पहाड़ो पर उतरती हैं 
मुझे लगता है दिल खींच कर चला आता हैं हाथों पर  
तुझे लिखुँ तो मेरी उंगलियां ऐसे धड़कती हैं 



जिस तरह वापस कोई ले जाये अपनी चिट्ठियां 
जाने वाला इस तरह से कर गया तन्हां मुझे 
तुमने देख हैं किसी मीरा को मंदिर में कभी 
एक दिन उसने खुदा से इस तरह माँगा मुझे 



खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो 
घर पे बैठा रहुं मैं गिरफ़्तार सा 
मैं फ़रिश्तो कीसोहबत के लायक नहीं 
हमसफ़र कोई होता गुनेहगार सा 



ऐसा लगता  हैं हर इम्तेहां के लिए 
ज़िंदगी को हमारा पता याद हैं 
मैं पुरानी हवेली का पर्दा 
मुझे कुछ कहा याद हैं कुछ सुना हैं 



अब भी चेहरा चराग़ लगता हैं 
बुझ गया हैं मगर चमक है वहीं 
प्यार किसका मिला है इस मिट्टी में 
इस चमेली तले महक़ है वहीं 



दिल को पत्थर हुए एक ज़माना हुआ 
इस मकां में मगर बोलता कौन हैं 
आसमानों को हमने बताया नहीं 
डूबती शाम में डूबता कौन हैं 



वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा हैं 
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे 
नहीं हैं मेरे मुक्कदर में रौशनी न सही 
खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे 



मेरी ज़िंदगी भी मेरी नहीं ये हज़ार खानो में बट गयी 
मुझे एक मुट्ठी ज़मींन दे ये ज़मीन कितनी सिमट गयी 
मुझे लिखे वाला लिखे भी क्या मुझे पढ़ने वाला पढ़े भी क्या 
जहाँ मेरा नाम लिखा गया वही रौशनाई उलट गयी 



न कोई ख़ुशी न मलाल हैं 
की सभी का एक सा हाल हैं 
तेरे सुख के दिन भी गुज़र गए 
मेरे ग़म की रात भी कट गयी 



मैं चुप रहा तो और गलतफहमियां बढ़ी 
वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं 
चेहरे पे आंशुओं से लिखी हैं कहानियां 
आईना देखने का मुझे हौसला नहीं 

कोई फूल सा हाथ कांधे पे था 
मेरे पांव शोलो पर जलते रहे 
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया 
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे 
मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी 
किराये के घर थे बदलते रहे 



उदासी का ये पत्थर आंसुओं से नम नहीं होता 
हज़ारो जुगनुओं से भी अँधेरा कम नहीं होता 
कभी बरसात में शादाब बेलें सुख जाती हैं 
हरे पेड़ो के गिरने का कोई मौसम नहीं होता 
बिछड़ते वक्त कोई बदगुमानी दिल में आ जाती हैं 
उसे भी ग़म नहीं होता हमें भी ग़म नहीं होता 


 
इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हुं मैं 
तमाम लोग फ़रिश्ते है आदमी हुं मैं 
 पक्की उमरो की एक बेजुबान सी लड़की 
उसी का रिश्ता हुं और वो भी आख़री हुं  मैं 



सर झुकाओंगे तो पत्थर देवता हो जायेगा 
इतना मत चाहों उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा 
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हुं दोस्तों   
ज़हर भी इसमें होगा तो दवा हो जायेगा 



एक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आंखों से कहा बहोत मुँह से कुछ भी नहीं 
जिस पर हमारी आंख ने मोती बिछाये रात भर 
भेजा वही कागज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं 



उसकी भी मजबूरियां हैं मेरी भी मजबूरियां 
रोज़ मिलते है मगर घर में बात सकते नहीं 
देने वाले ने दिया सब कुछ अज़ब अंदाज़ में 
सामने दुनिया पढ़ी हैं और उठा सकते नहीं 



मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 
अजीब होती है ये कुर्बतों की दुरी भी 
वो मेरे पास रहा और कभी न मिला 
खुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने 
बस एक शख़्स को चाहा मुझे वहीं न मिला 



सौ ख़ुलूस बातों में सौ करम ख़यालों में 
बस ज़रा वफ़ा काम है तेरे शहर वालों में 
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओंगे 
 रात के मुसाफिर थे खो गए उजालों में 



कभी यूँ भी आ मेरे आँख में की मेरी नज़र को खबर ना हो 
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद ज़हर न हो
वो बड़ा रहिम-ओ- करीम हैं मुझे ये सिफ़त भी अता करें 
तुझे भूलने की दुआ करुँ तो मेरी दुआ में असर न हो 








 

Shakeel Azmi (Ghazal)

शकील आज़मी जैसे कुछ शायर ही हैं जिन्होंने कवि-सम्मलेन और मुशायरों जैसी रिवाज़ को जिन्दा रखा हैं | शकील आज़मी गीतकार होने के साथ-साथ एक फेमस शायर भी हैं जिनका फ़िल्मी दुनिया में भी बहुत नाम हैं | मुशायरों में अलग अंदाज़ में शायरी पढ़ने वालो में इनका भी नाम हैं |  इनका शेर-ओ-शायरी पढ़ने का अंदाज़ आज कल के युवाओं को भी बहुत पसंद आता हैं | इन्होने कई सारी गज़ले भी लिखी हैं तो इसीलिए आज इस पोस्ट में मैं आपके सामने इनकी कुछ ग़ज़लें पेश कर रहा हूँ जो मुझे लगता हैं की आपको पसंद आयेगी -


-मर के मिट्टी में मिलूंगा-



मर के मिट्टी में मिलूंगा और खाद हो जाऊँगा मैं
फिर खिलूँगा शाक पर आबाद हो जाऊँगा मैं

बार-बार आऊँगा मैं तेरी नज़र के सामने 
 और एक रोज़ तेरी याद हो जाऊँगा मैं 

तेरे सीने में  उतर आऊँगा चुपके से कभी 
फिर ज़ुदा होकर तेरी फ़रियाद हो जाऊँगा मैं 

अपनी जुल्फों को हवा के सामने मत खोलना 
वर्ना खुशबु की तरह आज़ाद हो जाऊँगा मैं 

 

-रुकने का बहाना मिलता- 



और कुछ दिन यहाँ रुकने का बहाना मिलता 
इस नए शहर में कोई तो पुराना मिलता 

 मैं तो जो कुछ भी था जितना भी था सब मिट्टी था 
तुम अगर ढूंढते तो मुझमें खज़ाना मिलता '

मुझको हंसने के लिए दोस्त मयस्सर है बहोत 
 क़ाश रोने के लिए भी कोई शाना मिलता 

 

 -कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं-



कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं 
तमाशा करते-करते खुद तमाशा हो गया था मैं 

न मेरा नाम था न दाम बाज़ार-ए-मोहब्बत में
 बस उसने भाव पूछा और महंगा हो गया था मैं 

बिता दी उम्र मैंने बस एक आवाज़ सुन'ने में 
उसे जब बोलना आया तो बहरा हो गया था मैं 

बुझा तो खुद में एक चिंगारी भी बाकि नहीं रखी 
उसको तारा बनाने में अँधेरा हो गया था मैं 


 







Friday 22 May 2020

Abbash Tabish -


अब्बाश ताबिश


अब्बाश ताबिश पाकिस्तान के मशहूर शायरों में से है | इनका जन्म 15 जून 1961 को लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ था | अब्बाश ताबिश की प्रमुख गज़ले मोहब्बत की कहानी नहीं मरती  लेकिन और रक्स जारी हैं |

Rajesh Reddy -

राजेश रेड्डी  

राजेश रेड्डी एक हिंदी व उर्दू के सुप्रशिद्ध शायर है | शायर राजेश रेड्डी का जन्म 22 जुलाई 1952 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था | राजेश रेड्डी ज्यादातर समाज की सच्चाइयों पर शायरी कहते हैं | राजेश रेड्डी की बहुत सारे शेरो में एक अलग तरह का समाज के लिए सन्देश झलकता हैं | राजेश रेड्डी की प्रमुख रचनाएँ जाने कितनी उड़ान बाकी है, आसमां से आग,  उड़ान आदि हैं |

Uday Pratap Singh -

उदय प्रताप सिंह



उदय प्रताप सिंह एक कवि, साहित्यकार और राजनेता हैं | इनका जन्म 18 मई 1932  को मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) में हुआ था | उदय प्रताप सिंह अपने बेबाक़ कविताओं और शेरों के लिए प्रख्यात है | उदय प्रताप सिंह कवि सम्मेलन व मुशायरों में अक्सर भाषायी एकता के मुद्दों पर बात करते हैं | 
इनकी प्रमुख रचनाएँ फूल और कली, गांव की तरफ, महका के घर रख दिया, कहानी छोड़ जाते है | 

Dushyant Kumar -

दुष्यंत कुमार 

 

दुष्यंत कुमार त्यागी एक हिंदी कवी, कथाकार और ग़ज़लकार थे | इनका जन्म 27 सितम्बर 1931 को बिजनौर (उत्तरप्रदेश) में हुआ था | निदा फ़ाज़ली इनके बारे में कहते है की दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के गुस्से और नाराज़गी से सजी हैं | यह गुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीती के कुकर्मो के खिलाफ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज के मधयमवर्गी झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमाईंदगी करती हैं | कहाँ तो तय था', 'कैसे मंजर', 'खंडहर बचे हुए हैं', 'जो शहतीर है', 'ज़िंदगानी का कोई','मकसदहो गई है पीर पर्वत-सी', अब तो पथ यही है इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं| 30 दिसम्बर 1975 को दुष्यंत कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया |

Bashir Badr -

बशीर बद्र 


बशीर बद्र उर्दू के महान शायरी में से एक हैं |  इनका पूरा नाम सैय्यद मोहम्मद बशीर है | इनका जन्म फैज़ाबाद (उत्तरप्रदेश) में हुआ था और ये भोपाल से भी ताल्लुक रखते हैं | बशीर बद्र दुनिया के दर्जनों मुशायरों  में शिरकत कर चुके हैं | साहित्य और नाटक अकादमी में अपने अहम योगदान के लिए 1999  में इन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया | बशीर बद्र की ग़ज़लों में वो खासियत है जो आमो खास को अपने और खींच लेती है| आस, फुलो की छतरियां, उजाले अपनी यादों के, सात जमीने एक सितारा  इनकी प्रमुख रचना है |

Parveen Shakir -

 परवीन शाकिर

 

परवीन शाकिर उर्दू की शायरा, शिक्षक, और पाकिस्तान की सिविल सेवा में एक अधिकारी थी | परवीन शाकिर का जन्म 24  नवम्बर 1952 को कराची, सिंध, (पाकिस्तान) में हुआ था | इनके बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है की जब एक बार ये 1982 में सेंट्रल सुपेरिअर सर्विस की लिखित परीक्षा में बैठी थी तो उस परीक्षा में उन्ही पर एक सवाल पूछा गया था | आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते है की वो पाकिस्तान में कितनी मकबूल थी | शायरी की दुनिया में हमेशा मर्द शायरों की ही हुकूमत रही है औरतों की बात भी यही करते रहे लेकिन परवीन शाकिर नें औरतों की बेवफाई, वियोग और तलाक जैसे विषयों पर शायरी कही जोकि एक औरत है समझ सकती है | 26 दिसम्बर 1994 को इस्लामाबाद में एक रोड एक्सीडेंट में इनकी मौत हो गयी | जिस रोड पर उनकी मौत हुई उस रोड का नाम इन्ही के नाम पर दिया गया जिसका नाम है "परवीन शाकिर रोड " | परवीन शाकिर की प्रमुख रचनाएँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार, माह-ए-तमाम  हैं |

Jaun Elia -

   जॉन एलिया



दुबले पतले शरीर, लम्बे काले बाल , काला चश्मा और अपने ही धुन में रहने वाले ऐसे ही एक शख्सियत का नाम था ' जॉन एलिया '| जॉन एलिया साहब उर्दू के एक महान शायर, दार्शनिक और कवि थे | इनका जन्म उत्तरप्रदेश के अमरोहा में 18  दिसंबर 1931 को हुआ था | उन्हें आज के युवा शायरी का रॉकस्टार भी कहते हैं | जॉन पाकिस्तानी थे, मगर अदब से पुरे हिंदुस्तान में पड़े और सुने जाते थे | जॉन अभी के वक्त सबसे ज्यादा पड़े जाने वाले शायरों में से एक है, आज भी इनके शेर सोशल प्लेटफार्म में ट्रेंड पर रहते है | यानि, गुमान, लेकिन, गोया, इनकी किताबें है | जॉन का मुशायरा में शेर कहने का अंदाज़ बेहद अलग था जो आप यूट्यूब पर उनका मुशायरा वाला वीडियो में देख सकते हैं |  ज़िंदगी में खुद को नाकामयाब समझते वाले जॉन 8 नवम्बर 2002 को चल बसे | 









Tuesday 19 May 2020

Manoj Muntashir



मनोज शुक्ला या मनोज मुंतशिर ( 27  फरवरी 1976  ) एक प्रसिद्ध भारतीय  गीतकार,कवी व पटकथा लेखक है | इनका जन्म उत्तरप्रदेश के अमेठी में हुआ था | इन्होने कई सारे फ़िल्मी गीत लिखे है जिनमें  से गालियाँ ( एक विलेन ), तेरी मिटटी ( केशरी ), तेरे संग यारा ( रुश्तम ) जैसे कुछ अहम गीत है | फ़िल्मी गीतों के साथ-साथ इन्होने कुछ क़िताबें भी लिखी है जिनमें से एक क़िताब है- मेरी फ़ितरत है मस्ताना  | 


 मैं इनकी एक हिंदी कविता " क्या क्या भुलाना होगा " आज इस पोस्ट में आपके सामने पेश कर रहा हूँ -

   



 - क्या-क्या भुलाना होगा - 

 

 

  दिल जिसे कहते है वो शहर जलाना होगा 
 एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा

भूलना होगा मुझे पहली मुलाक़ात का दिन 

जून की सातवीं तारीख़ वो बरसात का दिन

तुझसे कुछ कहना मेरा दिल से इरादा करके
और तेरा जाना वो फिर आने का वादा करके

भूलना होगा वो कैफे जहां हम आते थे
और वो सोफा जहां पहरों गुज़र जाते थे

भूलनी होगी वो फिल्में जो साथ में देखी
दोपहर में तो कभी रात में देखी 


  भूलने होंगे वो नॉवेल जो साथ-साथ पढ़ी
और लाइब्रेरी के ज़ीने जो साथ-साथ चढ़े

इश्क़ करने के वो मौसम वो ज़माने सारे
 भूलने होंगे गुलज़ार के वो गाने सारे

भूलने होंगे वो आंसू जो हँसते हँसते बहे
और कुछ रंग भी जो अपने साथ-साथ रहे

वो हरी शर्ट जो मेरे लिए तू लायी थी
जामुनी कुर्ती जो मैंने तुझे दिलाई थी

तुझे ख़ुश करने के ज़िद वो मेरा दीवानापन
मैं ढूंढ-ढूंढ के लाता था लाल रंग के रिबन

वो सिर्फ प्यार था मज़बूरी थोड़ी थी
हमने एक शॉल कभी आधी-आधी ओढ़ी थी

है आज याद भी सब एक कहानी की तरह
वो शॉल नीली हुआ करती थी पानी की तरह

संग जो गुज़रे वो सुबह शाम भूलने होंगे
 कितने रंगों के मुझे नाम भूलने होंगे

दिल जिसे कहते है वो शहर जलाना होगा
एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा




 





















  



Friday 15 May 2020

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Sunday 3 May 2020

Uday Pratap Singh ( Ghazal )



आज इस पोस्ट में मैं आपके सामने इनकी कुछ ग़ज़लें पेश कर रहा हुँ  -






महका के घर रख दिया 

 


हम ने माना कि महका के घर रख दिया
कितने फूलों का सर काट कर रख दिया

तुम मेरे पास हो रात हैरान है
चाँद किस ने इधर का उधर रख दिया

एक लम्हे को सूरज ठहर सा गया
हाथ उस ने मेरे हाथ पर रख दिया

दे के कस्तूरी हिरनों की तक़दीर में
प्यास का एक लम्बा सफ़र  रख दिया

तुम ने ये क्या किया बत्तियों की जगह
इन चरागों में आँधी का डर रख दिया

अपना चेहरा न पोंछा गया आप से
आईना बे-वजह तोड़ कर रख दिया

आख़िरी फ़ैसला वक़्त के हाथ है
सच ने तलवार के आगे सर रख दिया

देने वाले ने हस्सास नाज़ुक सा दिल
मेरे सीने में क्यों ख़ास कर रख दिया

तुम ' उदय ' चीज़ क्या हो कि इस प्यार ने
देवताओं का दिल तोड़ कर रख दिया

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जहाँ जाते है हम कोई कहानी छोड़ जाते है 

 

 

जहाँ जाते है हम कोई कहानी छोड़ जाते है
ज़रा सा प्यार  थोड़ी सी जवानी छोड़ आते है 

कहानी राम की वन- वासियों पर फख्र करती है 
उसूलों के लिए जो राजधानी छोड़ जाते है 

हमारे मय-कदे का ख़ास ये दस्तूर है वाइज 
यहाँ आए तो बाहर बद-गुमानी छोड़ आते है 

कहीं पर दिल नहीं मिलता कहीं महफ़िल नहीं मिलती 
इसी चक्कर में हम शामें सुहानी छोड़ आते है 

कभी जब ख़ुद से मिलने की ज़रूरत पेश आती है 
सुनहरे ख़्वाब बातें आसमानी छोड़ आते है 

मोहब्बत में ' उदय ' देना न दिल कम-ज़र्फ़ लोगों को 
नई की धुन में जो चीज़ें पुरानी छोड़ आते है 


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Saturday 2 May 2020

बेहतरीन Motivational शेर









दोस्तों शेर-ओ-शायरी सिर्फ दिल बहला लेने का ज़रिया नहीं है जब कभी ज़िंदगी इम्तेहान लेती है, जब कभी हम उस दौर में पहुंच जाते है जहाँ हमारी हिम्मते टूटने लगती है या जहाँ हमारे हौसले बुझने लगते है तब यही शेर-ओ-शायरी  हमारे हौसलों में नयी जान फुक  देती है | इसीलिए आज मैं  इस पोस्ट में कुछ मशहूर शायरो के ऐसे कुछ बेहतरीन मोटिवेशनल शेर पेश कर रहा हुं -



- मोटिवेशनल शेर -

 

  

कश्तियाँ सबकी किनारे पे पहुँच जाती है
नाख़ुदा जिनका नहीं होता ख़ुदा होता है
 
  - आमिर मीनाई -


ना हमसफ़र ना किसी हमनशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का कांटा हमीं से निकलेगा

  - राहत इन्दोरी -