वरुण आनंद एक युवा शायर हैं |उन्होंने बहुत से मुशायरो में शायरी पढ़ी हैं | ये दिल्ली में हर साल होने वाली कार्यक्रम रेख्ता में भी पढ़ चुके हैं | आज मैं इस पोस्ट में इनकी कुछ गज़ले आपके सामने पेश कर रहा हूँ -
- दुःख समझ आए -
वो क्या सुखन है, कि जिस्मों का दुःख समझ आये
कहो कुछ ऐस कि रूहों का दुःख समझ आए
शदीद धुप में इक रोज़ ख़ुद जलो साहब
तुम्हें भी सूखते पेड़ों का दुःख समझ आए
मैं चाहता हूँ कोई तीसरा भी हो हम में
कि जिसको ठीक से दोनों का दुःख समझ आए
फिर एक रोज़ हमें क़ैद कर दिया उसने
वो इसलिए कि परिंदों का दुःख समझ आए
वो क्या ख़ुदा जो फ़रिश्तो का दुःख समझता हो
ख़ुदा वहीं जिसे बंदों का दुःख समझ आए
पहन के देख किसी रोज़ बाप के जूते
तो तुझको बाप के पैरों का दुःख समझ आए
छड़ी ली हाथ में आँखों पे बाँध ली पट्टी
मैं चाहता था कि अंधों का दुःख समझ आए
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