Sunday 24 May 2020

Javed Akhtar (Nazm)

जावेद अख्तर फ़िल्मी दुनिया में बहुत ही जाना-माना  नाम हैं |  जावेद अख्तर कवि, गीतकार और पटकथा लेखक हैं | इन्होंने बहुत सारे गीत, ग़ज़लें और कुछ बेहतरीन नज़्में लिखी हैं | इनमें से कुछ नज़्में मैं आपके सामने इस पोस्ट के जरिये आप तक पंहुचा रहा हूँ -




-दुश्वारी-



मैं भूल जाऊँ तुम्हें 
अब यही मुनासिब है
मगर भूलना भी चाहुँ तो किस तरह भूलुँ 
की तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो 
कोई ख़्वाब नहीं हों
यहाँ तो दिल का आलम हैं क्या कहुँ 
कम्बख़्त !
भुला सका न ये सिलसिला 
जो था ही नहीं 
वो एक ख़्याल 
जो आवाज़ तक गया ही नहीं 
वो एक बात 
जो मैं कह न सका तुमसे 
वो एक रब्त 
जो हममें रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब 
जो कभी हुआ ही नहीं 


-अज़ीब आदमी था वो- 


अज़ीब आदमी था वो 
मोहबतों  का गीत था 
बग़ावतो का राग था 
कभी वो सिर्फ फूल था 
कभी वो सिर्फ आग था 
अजीब आदमी था वो 

वो मुफ़लिसों से कहता था 
कि दिन बदल भी सकते हैं 
वो जाबीरों से कहता था 
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं 
कभी पिघल भी सकते हैं 
वो बंदिशों से कहता था 
मैं तुमको तोड़ सकता हूँ 
सहूलतों से कहता था 
मैं तुमको छोड़ सकता हूँ 
हवाओं से वो कहता था 
मैं तुमको मोड़ सकता हूँ 

वो ख़्वाब से ये कहता था 
कि तुझ को सच करूंगा मैं 
वो आरज़ूओं से कहता था 
मैं तेरा हमसफ़र हूँ  
तेरे साथ ही चलूँगा मैं 
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंज़िले 
कभी नहीं थकूंगा मैं 
वो ज़िंदगी से कहता था 
कि तुझको मैं सजाऊँगा 
तू मुझ से चाँद मांग ले 
मैं चाँद ले के आऊँगा 
वो आदमी से कहता था
कि आदमी से प्यार कर 
उजड़ रही है ये ज़मीं कुछ
 इसका तू सिंघार कर 
अज़ीब आदमी था वो 

वो ज़िंदगी के सारे ग़म 
तमाम दुःख 
हर एक सितम से कहता था 
मैं तुमसे जीत जाऊँगा 
कि तुम को तो मिटा ही देगा 
एक रोज़ आदमी 
भुला ही देगा ये जहाँ 
मेरी अलग हैं दास्ताँ 

वो आँखे जिनमें ख़्वाब हैं 
वो दिल हैं जिनमें आरज़ू 
वो बाज़ू जिनमें है सकत 
वो होंठ जिनमें लफ्ज़ हैं 
रहूँगा उन के दरमियाँ 
कि जब मैं बीत जाऊँगा 

अजीब आदमी था वो





















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