उर्दू शायरी और हिंदी कविता सुनने व समझने वाला ऐसा कौन सा शख्स है जिसने डॉ बशीर बद्र का नाम उनके शेर नहीं सुने | बशीर बद्र शायरी की एक भरी-पूरी कायनात के मालिक है | बशीर बद्र साहब की आपने बहुत सी शेर-ओ-शायरी सुनी होगी जो आपने सुना है, वो खूबसूरत है और जो आपने नहीं सुना वो और भी खूबसूरत हैं | इसीलिए मैं आज इस पोस्ट में बशीर बद्र साहब की कुछ चुंनिंदा शायरी (शेर) आपके सामने पेश कर रहा हुँ, मुलाहिज़ा फरमाइए -
अंधेरे रास्तों पर यूँ तेरी आंखे चमकती हैं
खुदा की बरकते जैसे पहाड़ो पर उतरती हैं
मुझे लगता है दिल खींच कर चला आता हैं हाथों पर
तुझे लिखुँ तो मेरी उंगलियां ऐसे धड़कती हैं
जिस तरह वापस कोई ले जाये अपनी चिट्ठियां
जाने वाला इस तरह से कर गया तन्हां मुझे
तुमने देख हैं किसी मीरा को मंदिर में कभी
एक दिन उसने खुदा से इस तरह माँगा मुझे
खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो
घर पे बैठा रहुं मैं गिरफ़्तार सा
मैं फ़रिश्तो कीसोहबत के लायक नहीं
हमसफ़र कोई होता गुनेहगार सा
ऐसा लगता हैं हर इम्तेहां के लिए
ज़िंदगी को हमारा पता याद हैं
मैं पुरानी हवेली का पर्दा
मुझे कुछ कहा याद हैं कुछ सुना हैं
अब भी चेहरा चराग़ लगता हैं
बुझ गया हैं मगर चमक है वहीं
प्यार किसका मिला है इस मिट्टी में
इस चमेली तले महक़ है वहीं
दिल को पत्थर हुए एक ज़माना हुआ
इस मकां में मगर बोलता कौन हैं
आसमानों को हमने बताया नहीं
डूबती शाम में डूबता कौन हैं
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा हैं
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे
नहीं हैं मेरे मुक्कदर में रौशनी न सही
खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे
मेरी ज़िंदगी भी मेरी नहीं ये हज़ार खानो में बट गयी
मुझे एक मुट्ठी ज़मींन दे ये ज़मीन कितनी सिमट गयी
मुझे लिखे वाला लिखे भी क्या मुझे पढ़ने वाला पढ़े भी क्या
जहाँ मेरा नाम लिखा गया वही रौशनाई उलट गयी
न कोई ख़ुशी न मलाल हैं
की सभी का एक सा हाल हैं
तेरे सुख के दिन भी गुज़र गए
मेरे ग़म की रात भी कट गयी
मैं चुप रहा तो और गलतफहमियां बढ़ी
वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं
चेहरे पे आंशुओं से लिखी हैं कहानियां
आईना देखने का मुझे हौसला नहीं
कोई फूल सा हाथ कांधे पे था
मेरे पांव शोलो पर जलते रहे
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मोहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराये के घर थे बदलते रहे
उदासी का ये पत्थर आंसुओं से नम नहीं होता
हज़ारो जुगनुओं से भी अँधेरा कम नहीं होता
कभी बरसात में शादाब बेलें सुख जाती हैं
हरे पेड़ो के गिरने का कोई मौसम नहीं होता
बिछड़ते वक्त कोई बदगुमानी दिल में आ जाती हैं
उसे भी ग़म नहीं होता हमें भी ग़म नहीं होता
इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हुं मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते है आदमी हुं मैं
पक्की उमरो की एक बेजुबान सी लड़की
उसी का रिश्ता हुं और वो भी आख़री हुं मैं
सर झुकाओंगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
इतना मत चाहों उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हुं दोस्तों
ज़हर भी इसमें होगा तो दवा हो जायेगा
एक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आंखों से कहा बहोत मुँह से कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आंख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही कागज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
उसकी भी मजबूरियां हैं मेरी भी मजबूरियां
रोज़ मिलते है मगर घर में बात सकते नहीं
देने वाले ने दिया सब कुछ अज़ब अंदाज़ में
सामने दुनिया पढ़ी हैं और उठा सकते नहीं
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
अजीब होती है ये कुर्बतों की दुरी भी
वो मेरे पास रहा और कभी न मिला
खुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने
बस एक शख़्स को चाहा मुझे वहीं न मिला
सौ ख़ुलूस बातों में सौ करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा काम है तेरे शहर वालों में
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओंगे
रात के मुसाफिर थे खो गए उजालों में
कभी यूँ भी आ मेरे आँख में की मेरी नज़र को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद ज़हर न हो
वो बड़ा रहिम-ओ- करीम हैं मुझे ये सिफ़त भी अता करें
तुझे भूलने की दुआ करुँ तो मेरी दुआ में असर न हो
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