गोपालदास नीरज एक प्रसिद्ध गीतकार और कवि है| इनके लिखे गाने लोकगीत का दर्जा हासिल कर चुके है | इन्हें इनके गीतों के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चूका हैं | नीरज जी को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता हैं जिन्होंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया | आज मैं इस पोस्ट में मैं आपके सामने गीतकार नीरज नहीं बल्कि कवि नीरज की कुछ कवितायें पेश करने जा रहा हूँ जो की मुझे बेहद पसंद है -
- आंसू जब सम्मानित होंगे -
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जायेगा
मानपत्र मैं नहीं लिख सका राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक रहा जनम से सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये केवल इस गलती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला मुझको ये श्राप दिया जायेगा
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा
खिलने को तैयार नहीं थी तुलसी जिनके आँगन में
मैंने भर भर दिए सितारे उनके मटमैले आँगन में
पीड़ा के संग रास रचाया आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया क्या किसी से इस तरह जिया जायेगा
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा
काज़ल और कटाक्षों पर तो रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किन्तु बरसने वाली आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी तार तार हर साँस हो गयी
फटा हुआ ये कुर्ता अब तो ज्यादा नहीं सिया जायेगा
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा
जब भी कोई सपना टुटा मेरी आँख वहां बरसी हैं
तड़पा हुं मैं जब भी कोई मछली पानी को तरसी हैं
गीत दर्द का पहला बेटा दुःख है उसका खेल खिलौना
कविता जब मीरा होंगी जब हँसकर जहर पीया जायेगा
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जायेगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जायेगा
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जोश से भरी हुयी नीरज जी की एक खूबसूरत और मेरी बहुत ही पसंदीदा कविता आपके सामने प्रस्तुत हैं -
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- तूफ़ानो में चलने का आदी हूँ -
मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते
सच कहता हूँ जब मुश्किल ना होती हैं
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे
तुम पथ के कण कण को तूफ़ान करो
मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
अंगार अधर पे धार मैं मुस्काया हूँ
मैं मर्घट से ज़िंदगी बुला के लाया हूँ
हूँ आँख -मिचौनी खेल चला किस्मत से
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ
तुम मत मुझ पर कोई अहसान करो
मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
शर्म के जल से राह सदा सींचती हैं
गति की मशाल आंधी मैं ही हंसती हैं
शोलो से ही श्रृंगार पथिक का होता हैं
मंज़िल की मांग लहुं से ही सजती हैं
पग में गति आती हैं, छाले छिलने से
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो
मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
मैं पंथी तूफ़ानो में रह बनाता
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता
वेह मुझे रोकती हैं अवरोध बिछाकर
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता
मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हंसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो
मैं तूफ़ानो में चलने का अदि हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
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