शकील आज़मी जैसे कुछ शायर ही हैं जिन्होंने कवि-सम्मलेन और मुशायरों जैसी रिवाज़ को जिन्दा रखा हैं | शकील आज़मी गीतकार होने के साथ-साथ एक फेमस शायर भी हैं जिनका फ़िल्मी दुनिया में भी बहुत नाम हैं | मुशायरों में अलग अंदाज़ में शायरी पढ़ने वालो में इनका भी नाम हैं | इनका शेर-ओ-शायरी पढ़ने का अंदाज़ आज कल के युवाओं को भी बहुत पसंद आता हैं | इन्होने कई सारी गज़ले भी लिखी हैं तो इसीलिए आज इस पोस्ट में मैं आपके सामने इनकी कुछ ग़ज़लें पेश कर रहा हूँ जो मुझे लगता हैं की आपको पसंद आयेगी -
-मर के मिट्टी में मिलूंगा-
मर के मिट्टी में मिलूंगा और खाद हो जाऊँगा मैं
फिर खिलूँगा शाक पर आबाद हो जाऊँगा मैं
फिर खिलूँगा शाक पर आबाद हो जाऊँगा मैं
बार-बार आऊँगा मैं तेरी नज़र के सामने
और एक रोज़ तेरी याद हो जाऊँगा मैं
तेरे सीने में उतर आऊँगा चुपके से कभी
फिर ज़ुदा होकर तेरी फ़रियाद हो जाऊँगा मैं
अपनी जुल्फों को हवा के सामने मत खोलना
वर्ना खुशबु की तरह आज़ाद हो जाऊँगा मैं
और कुछ दिन यहाँ रुकने का बहाना मिलता
इस नए शहर में कोई तो पुराना मिलता
मैं तो जो कुछ भी था जितना भी था सब मिट्टी था
तुम अगर ढूंढते तो मुझमें खज़ाना मिलता '
मुझको हंसने के लिए दोस्त मयस्सर है बहोत
क़ाश रोने के लिए भी कोई शाना मिलता
कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं
तमाशा करते-करते खुद तमाशा हो गया था मैं
न मेरा नाम था न दाम बाज़ार-ए-मोहब्बत में
बस उसने भाव पूछा और महंगा हो गया था मैं
बिता दी उम्र मैंने बस एक आवाज़ सुन'ने में
उसे जब बोलना आया तो बहरा हो गया था मैं
बुझा तो खुद में एक चिंगारी भी बाकि नहीं रखी
उसको तारा बनाने में अँधेरा हो गया था मैं
और एक रोज़ तेरी याद हो जाऊँगा मैं
तेरे सीने में उतर आऊँगा चुपके से कभी
फिर ज़ुदा होकर तेरी फ़रियाद हो जाऊँगा मैं
अपनी जुल्फों को हवा के सामने मत खोलना
वर्ना खुशबु की तरह आज़ाद हो जाऊँगा मैं
-रुकने का बहाना मिलता-
और कुछ दिन यहाँ रुकने का बहाना मिलता
इस नए शहर में कोई तो पुराना मिलता
मैं तो जो कुछ भी था जितना भी था सब मिट्टी था
तुम अगर ढूंढते तो मुझमें खज़ाना मिलता '
मुझको हंसने के लिए दोस्त मयस्सर है बहोत
क़ाश रोने के लिए भी कोई शाना मिलता
-कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं-
कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं
तमाशा करते-करते खुद तमाशा हो गया था मैं
न मेरा नाम था न दाम बाज़ार-ए-मोहब्बत में
बस उसने भाव पूछा और महंगा हो गया था मैं
बिता दी उम्र मैंने बस एक आवाज़ सुन'ने में
उसे जब बोलना आया तो बहरा हो गया था मैं
बुझा तो खुद में एक चिंगारी भी बाकि नहीं रखी
उसको तारा बनाने में अँधेरा हो गया था मैं
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