मनोज शुक्ला या मनोज मुंतशिर ( 27 फरवरी 1976 ) एक प्रसिद्ध भारतीय गीतकार,कवी व पटकथा लेखक है | इनका जन्म उत्तरप्रदेश के अमेठी में हुआ था | इन्होने कई सारे फ़िल्मी गीत लिखे है जिनमें से गालियाँ ( एक विलेन ), तेरी मिटटी ( केशरी ), तेरे संग यारा ( रुश्तम ) जैसे कुछ अहम गीत है | फ़िल्मी गीतों के साथ-साथ इन्होने कुछ क़िताबें भी लिखी है जिनमें से एक क़िताब है- मेरी फ़ितरत है मस्ताना |
मैं इनकी एक हिंदी कविता " क्या क्या भुलाना होगा " आज इस पोस्ट में आपके सामने पेश कर रहा हूँ -
- क्या-क्या भुलाना होगा -
दिल जिसे कहते है वो शहर जलाना होगा
एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा
भूलना होगा मुझे पहली मुलाक़ात का दिन
जून की सातवीं तारीख़ वो बरसात का दिन
तुझसे कुछ कहना मेरा दिल से इरादा करके
और तेरा जाना वो फिर आने का वादा करके
भूलना होगा वो कैफे जहां हम आते थे
और वो सोफा जहां पहरों गुज़र जाते थे
भूलनी होगी वो फिल्में जो साथ में देखी
दोपहर में तो कभी रात में देखी
भूलने होंगे वो नॉवेल जो साथ-साथ पढ़ी
और लाइब्रेरी के ज़ीने जो साथ-साथ चढ़े
इश्क़ करने के वो मौसम वो ज़माने सारे
भूलने होंगे गुलज़ार के वो गाने सारे
भूलने होंगे वो आंसू जो हँसते हँसते बहे
और कुछ रंग भी जो अपने साथ-साथ रहे
वो हरी शर्ट जो मेरे लिए तू लायी थी
जामुनी कुर्ती जो मैंने तुझे दिलाई थी
तुझे ख़ुश करने के ज़िद वो मेरा दीवानापन
मैं ढूंढ-ढूंढ के लाता था लाल रंग के रिबन
वो सिर्फ प्यार था मज़बूरी थोड़ी थी
हमने एक शॉल कभी आधी-आधी ओढ़ी थी
है आज याद भी सब एक कहानी की तरह
वो शॉल नीली हुआ करती थी पानी की तरह
संग जो गुज़रे वो सुबह शाम भूलने होंगे
कितने रंगों के मुझे नाम भूलने होंगे
दिल जिसे कहते है वो शहर जलाना होगा
एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा
एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा
भूलना होगा मुझे पहली मुलाक़ात का दिन
जून की सातवीं तारीख़ वो बरसात का दिन
तुझसे कुछ कहना मेरा दिल से इरादा करके
और तेरा जाना वो फिर आने का वादा करके
भूलना होगा वो कैफे जहां हम आते थे
और वो सोफा जहां पहरों गुज़र जाते थे
भूलनी होगी वो फिल्में जो साथ में देखी
दोपहर में तो कभी रात में देखी
भूलने होंगे वो नॉवेल जो साथ-साथ पढ़ी
और लाइब्रेरी के ज़ीने जो साथ-साथ चढ़े
इश्क़ करने के वो मौसम वो ज़माने सारे
भूलने होंगे गुलज़ार के वो गाने सारे
भूलने होंगे वो आंसू जो हँसते हँसते बहे
और कुछ रंग भी जो अपने साथ-साथ रहे
वो हरी शर्ट जो मेरे लिए तू लायी थी
जामुनी कुर्ती जो मैंने तुझे दिलाई थी
तुझे ख़ुश करने के ज़िद वो मेरा दीवानापन
मैं ढूंढ-ढूंढ के लाता था लाल रंग के रिबन
वो सिर्फ प्यार था मज़बूरी थोड़ी थी
हमने एक शॉल कभी आधी-आधी ओढ़ी थी
है आज याद भी सब एक कहानी की तरह
वो शॉल नीली हुआ करती थी पानी की तरह
संग जो गुज़रे वो सुबह शाम भूलने होंगे
कितने रंगों के मुझे नाम भूलने होंगे
दिल जिसे कहते है वो शहर जलाना होगा
एक तुझे भूलने में क्या-क्या भुलाना होगा
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